May 02, 2011

मुट्ठी भर नमक...और बापू मुस्कुराए...








 

दांडी से समरेन्द्र शर्मा

दांडी सफरनामा

महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह के आखिरी पडाव यानी दांडी पहुंचकर दिलो-दिमाग रोमांचित हो गया। दिल-दिमाग पल भर के लिए फिरंगियों के खिलाफ गांधीजी की संघर्ष की दास्तना की कल्पना में खो गया और आंखो ने पलके मूंद ली। ऐसा लगा समुद्र की लहरें भी बापू के सत्याग्रह का चीख-चीखकर प्रमाण दे रहे हैं। कल्पना में खोए मन ने कहा कि यह वही ऐतिहासिक स्थान है, जहां पर मुट्ठी भर नमक बनाकर बापू शायद मुस्कुराए होंगे।

साबरमती से 25 दिनों की पैदल यात्रा के बाद महात्मा गांधी ने दांडी के इस स्थान पर नमक कानून तोड़कर अंग्रेजों को चुनौती दी थी। इस आंदोलन की शुरूआत में 78 सत्याग्रहियों के साथ दांडी कूच के लिए निकले बापू के साथ दांडी पहुंचते-पहुंचते पूरा आवाम जुट गया था। यहां पहुंचने से पहले गांधीजी ने कराडी में दोपहर और रात का विश्राम किया था। कराडी में आम के पेड के नीचे खजूर के पत्तों से बनी झोपड़ी को अपना ठिकाना बनाया था। वे यहां लंबे समय तक रहे। वे लगभग 20 दिनों तक यहां रहे थे। सत्याग्रह पर निकलने से पहले गांधीजी ने प्रण लिया था कि वे देश को आजाद कराए बिना साबरमती आश्रम नहीं लौटेंगे। लिहाजा आंदोलन की समाप्ति के बाद वे कराडी की झोपड़ी में रहने लगे थे। इसके बाद उन्होंने आंदोलन का विस्तार करते हुए कराडी से धरासणा कूच करने का ऐलान किया। धरासणा में नमक का कारखाना लूटने की घोषणा की थी। इससे अंग्रेज सरकार सकते में आ गई थी और 4 मई की आधी रात को कराडी की झोपड़ी से गिरफ्तार कर लिया।

नवसारी से 13 मील का फासला तय करके हम कराडी होते हुए दांडी पहुंचे। रास्ते भर मन बापू की आंदोलन से जुड़ी यादों को देखने के लिए बेताब हो रहा था। यहां पहुंचकर हमने सबसे पहले उस समुद्र का दर्शन किया, जिसके खारे पानी से उन्होंने नमक बनाया था। यहां का दृश्य और गांधीजी के संघर्ष को याद करके रोम-रोम खड़ा हो गया। समुद्र की लहरों की गड़गडाहट और ढलते सूरज की समुद्र में पड़ती किरणों ने दृश्य को और भी मनोरम बना दिया। नमक सत्याग्रह से जुड़ी बातों और तस्वीरों को याद करके मन कल्पनाशील हो गया। वीरान से दुखने वाले इस समुद्र तट में बापू के साथ जुटी लाखों की भीड और माहौल का अंदाजा लगाकर मन काफी देर कल्पना के समुद्र में गोते लगाने लगा। इससे बाहर के निकलने के बाद भी आंखे काफी देर तक समुद्र की लहरों को ताकती रही। 

 यहां से निकलकर हमने वह स्थान भी देखा, जहां गांधीजी नमक बनाया था। वो घर जहां गांधीजी रूके थे। इस स्थान को ऐतिहासिक बनाने केंद्र सरकार ने यहां मीठे-खारे पानी का सरोवर, गेस्ट हाउस, संग्रहालय और कई निर्माण कार्यों के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। काम भी शुरू हो गया था, लेकिन गांधीवादियों के विरोध के कारण योजना का काम रोक दिया गया है। गांधीवादी नेताओं की दलील है कि बापू फिजूलखर्ची के खिलाफ थे और उन्होंने सादगी के साथ अपना जीवन बिताया था। ऐसे में उनके नाम पर हजारों करोड़ रूपए खर्च करना बेकार है। 

 दिखते हैं बड़े-बड़े बंगले

वैसे तो दांडी काफी छोटा सा पंचायत है। यहां की आबादी केवल 11 सौ है, लेकिन सपंन्नता के मामले में यह छोटा सा पंचायत किसी शहर से कम नहीं है। यहां पूरे सड़क पर बड़े-बड़े आलीशान बंगले दिखाई देते हैं। हालांकि हर बंगलों में ताले लटके हुए हैं। दरअसल यह इलाका खारे पानी और जंगल सा था। यहां के आदिवासी काफी मुश्किल से अपना जीवन यापन करते थे। खेती-किसानी के लायक जमीन नहीं होने उनके पास मजदूरी के अलावा कोई दूसरा चारा था। अंग्रेजों ने यहां के लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर उन्हें केन्या, यूगांडा और अफ्रीका में काम करने के लिए भेजा था। वे लोग विदेशों में बस गए है। बड़ी संख्या में यहां से गए लोग जंगलों में जानवरों के शिकार बन गए। देश की आजादी के बाद इन यहां बसे लोगों को वापसी का प्रस्ताव दिया। ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीयों को इंग्लैंड आने का प्रस्ताव दिया और काफी भारतीयों ने इसे स्वीकार करते हुए इंग्लैंड में बस गए। यहां पहुंचकर इन परिवारों की चौथी पीढ़ी काफी संभल गई है। वे भले ही परदेश में रहते हो, काम करते हो,लेकिन मातृभूमि को नहीं छोड़ा है। अधिकांश लोगों ने यहां अपना गर बना लिया है और साल में एक-दो बार यहां आकर छुट्टियां मनाते हैं।