भारत और चीन के बीच सीमा विवाद कोई नई बात नहीं है। जमीन को लेकर चीन ने भारत पर हमला भी किया। विवाद अभी भी सुलझा नहीं है। देश का एक बड़ा हिस्सा चीन के कब्जे में है। राजीव गांधी के समय दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने की काफी कोशिश की। राजीव गांधी के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नारे खूब लगे। काफी समय से दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर राजनीतिक और सैन्य स्तर पर खुलकर कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ है। माना जा रहा है कि चीनी आक्रमण का खतरा टल गया है,लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि चीनी खतरा टला नहीं,बल्कि तेज हो गया है। हमला सीमा पर नहीं,घर-घर में हो रहा है।
पूरी प्लानिंग से चाइनीज घर-घर पहुंच रहे हैं। देश के प्रमुख त्योहारों से लेकर रुटीन में चीनी छाए हुए हैं। अगर अपने आसपास नजर दौड़ाया जाए तो आप भी इसे महसूस करेंगे कि ये आखिर हो क्या रहा है। होली का बाजार भी चाइनीज सामानों से भरा पड़ा है। बच्चों की पिचकारी से लेकर तरह-तरह के हर्बल रंग भी चीन से आए हैं। सस्ते होने के कारण गरीबों को लुभा भी रहे हैं। इसी तरह इलेकट्रानिक सामानों तथा बच्चों के खिलौनों से मार्केट पटा हुआ है।
हजार रुपए में मोबाइल युवाओं को इस कदर पसंद आ रहे हैं कि कालेज स्टूडेंट्स रोज नए-नए मोबाइल ले रहे हैं। लगभग हर घर चाइनीज सामानों से भरा पड़ा है। जिसका कोई उपयोग नहीं है। ये आइटम केबल घरों में कबाड़ पैदा कर रहे हैं। जानकारों का मानना है कि बाजार का 50 प्रतिशत हिस्सा चीन के कब्जे में है। ऐसे में इसे एक और चीनी आक्रमण कहना गलत नहीं लगता।
केवल आलोचना करने के लिए इन सामानों का विरोध नहीं कर रहा हूं। इनका उपयोग करने वाले खुद सोचें कि कुछ पैसे बचाने वे सस्ता सामान खरीद तो लेते है,लेकिन घर पहुंचने के बाद पता चलता है कि उनके हाथ खराब या कबाड़ लगा है। बहुत सारे लोग जानने के बाद बिना गारंटी वाले इन सामानों को खरीद रहे हैं। आखिर में सभी को होली की शुभकामना।
March 21, 2008
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