January 02, 2009

बदल रहा टेस्ट... सवाल आपका है....

खब़रों की दुनिया भी अज़ीब है। कब क्या घटना हो जाए और कौन सी खब़र हेडलाइन बन जाए, इसका पता ही नहीं लगता। खबरों की दुनिया से सीधे तौर से जुड़े रहने के बावजूद कई बार दुविधा होती है। लगता है कि हमारा टेस्ट बदल गया या फिर दर्शक या पाठक स्वाद बदल चाहते हैं। खासतौर से टीवी की दुनिया में तो अप्रत्याशित बदलाव आया है। ये बात इसलिए भी कह पा रहा हूं कि टीवी की दुनिया में दूसरी पारी खेल रहा हूं। पहली इनिंग में तो ज्यादा समय उसे समझने में लग गया। फिर भी कह सकता हूं कि दो चार साल में (समाचार चैनलों की बाढ़ की वजह से) काफी बदलाव आया है। टीआरपी और ब्रेकिंग की होड़ ने भी समाचार का टेस्ट बदल दिया है। खैर इस मसले पर बड़े बड़े दिग्गज कई बार लिख पढ़ चुके हैं और चैनलों की समय समय पर आलोचना भी है। तभी तो सरकार को लाइव और कार्यक्रमों पर सेंसर की जरूरत महसूस हो रही।

दरअसल,मुद्दे की बात ये है कि आज टीवी चैनलों पर एक अजीबोगरीब खब़र देखने मिली। बिलासपुर में तीन लड़कियों ने एक युवक का अपहरण कर लिया। जैसा कि खब़र में बताया गया कि लड़कियों ने बंदूक की नोंक पर उसका बलात्कार किया और ब्लू फिल्म भी बनाई। कम से कम छत्तीसगढ़ में संभवत इस तरह की घटना पहली बार हुई होगी। बस क्या था टीवी चैनलों को मौका मिला गया। सब के सब उस पर ऐसे टूटे मानों आलादीन का चिराग मिल गया हो। सभी चैनलों से पूरे दिन ऐसे घिसा कि टीवी में एक ही खबर नज़र आ रही थी। टीवी की भाषा में लोगों ने पूरा दिन उस खब़र पर खेला। कभी रिपोर्टर का फोनो तो कभी युवक का फोन पर इंटरव्यूह लेना शुरू कर दिया गया। आखिर में चेहरा मोजेक कर उसकी आपबीती भी दर्शकों को बेदरदी से परोसी गई।

मुझे लगता है कि एक सामान्य घटना के रूप में उसे दिखाया जा सकता था लेकिन जिस तरह से इसे सनसनीखेज बनाकर चलाया जा रहा था, उससे ऐसा लगा रहा था मानों खब़रों का अकाल पड़ गया हो। मेरा मानना है कि देश दुनिया में बहुत सी ऐसी ( पाजीटिव) खब़रों है जिसे दिखाकर लोगों का भला कर सकते हैं। कम से कम लोगों को खबरों देखकर मानसिक तनाव तो नहीं झेलना पड़ेगा और कुछ देर के लिए राहत मिलेगी। मुझे लगता है कि मीडिया ऐसा माध्यम है जिसे एक बड़ा वर्ग प्रभावित होता है। ऐसी घटनाओं को समाज और लोगों पर असर नहीं डालेगा। ये कहना काफी कठिन है। खाखिर में इतना कहना चाहूंगा कि हम सब को ही तय करना होगा कि क्या देखना और क्या नहीं। तभी गैरजरूरी खब़रों पर लगाम लग सकेगी। सनसनीखेज और चटपटी खब़रों की बढ़ती लोकप्रियता को कारण ही चैनलों को कुछ भी दिखाने सुनाने की लायसेंस दे दिया है।

January 01, 2009

हां, मेरे पास बहुत कुछ है....


छत्तीसगढ़ यानि नक्सल हिंसा और आदिवासी। ये दो ऐसे शब्द हैं, जो छत्तीसगढ़ के प्रर्यायवाची बन गए हैं। कम से कम छत्तीसगढ़ से बाहर रहने वालों की नज़र में तो ऐसा ही है। बाहर से आने वाले अधिकांश लोग सबसे छत्तीसगढ़ के बारे में इन्हीं दोनों को बारे में जानना चाहते हैं। दरअसल इसमें उनकी कोई गलती है। इसमें दोष हमारा ही है, जो अपने राज्य की अच्छाइयों को उस तरह से प्रचारित नहीं कर पाए। राज्य के हुक्मरानों, नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स ने भी इन्हीं बातों को लोगों के सामने रखा है। जबकि राज्य में इन दोनों के अलावा ढे़रों खूबियां है। खूबसूरती और संपदाओं के मामले में तो राज्य का कोई मुकाबला नहीं है।

छत्तीसगढ़ियों के मन की ये पीड़ा कोई नई बात नहीं है। मेरे मन में भी इसकी कसक काफी समय से है, लेकिन नए साल के स्वागत के दौरान मेरे साथियों की खब़रें और विचारों से ऐसा लगा जैसे वे लोग चीख चीख कर एक ही बात जानना चाहते हैं कि तुम्हारे पास नक्सली और हिंसा के अलावा क्या है ? मुझे लगता है कि छत्तीसगढ़ की खूबियों के वर्णन में किताब लिखी जा सकती है। मेरे मन में अभी से दुविधा हो रही है कि कहां से शुरू करूं।

मैं अपने साथियों और छ्तीसगढ़ के बारे में जानने के उत्सुक लोगों को बताना चाउंगा कि राज्य को प्राकृतिक सौंदर्य के मामले में स्वर्ग कहा जा सकता है। राजधानी रायपुर से बस्तर और सरगुजा तक साल बीज के घने जंगलों के बीच पग पग पर खूबसूरत नज़ारे हैं। सड़क किनारे लंबे चौड़े पेड़ों के बीच नदी-नालों और झरनों के दृश्य तो हर किसी को लुभाते हैं। जगदलपुर के चित्रकोट जलप्रपात का सतरंगी नज़ारा देखते ही नज़रें ठहर जाती हैं। चित्रकोट एशिया का सबसे चौड़ा जलप्रपात है। पहाड़ियों और सरगुजा के मैनपाट की खूबसूरती का वर्णन करना तो कम से कम मेरे लिए मुश्किल है।

राज्य की कला- संस्कृति और परम्परा ऐसी अनोखी है। जिसके अहसास मात्र से गजब का सुकून मिलता है। राज्य की आदिवासी कला, लोकगीत और पंड़वानी का डंका पूरी दुनिया में बजता है। पूरे प्रदेश में एतिहासिक मंदरों और धार्मिक स्थानों की भरमार है। हर शहर-गांव में कुछ न कुछ अद्भुत है। बात चाहे सिरपुर मंदिर की जाए या फिर भोरमबाबा की है। मुझे तो लगता है कि राज्य को खूबसूरती के मामले में वरदान प्राप्त है।

खनिज संपदाओं की बात करें तो राज्य किसी छोटे विकसित देश को कड़ी टक्कर दे सकता है। बेशकीमती हीरे से लेकर लौह अयस्कों और कोयला बाक्साइट की तो ऐसी भरमार है कि खत्म होने का नाम ले। पावर के मामले में राज्य पूरे देश में अव्वल है। जरूरी है तो बस इसके सही दोहन की। राज्य में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। राज्य हर क्षेत्र में नाम कमा रहा है, लेकिन इसका वास्तविक चेहरा गायब सा हो गया है। मार्डन संस्कृति को विकास का पैमाना मानने वालों के लिए भले ही राज्य पिछड़ा हो सकता है, दरअसल राज्य की अपनी अलग पहचान और संस्कृति है। लोग अपनी सोच और संकीर्णता के कारण राज्य को पिछड़ा करार दे रहे हैं। मैं अपने साथियों और लोगों सो कहूंगा कि छत्तीसगढ़ के बारे में कोई भी राय बनाने से पहले खुद अपनी आंखों से देखे और इसे परखें।