January 01, 2009

हां, मेरे पास बहुत कुछ है....


छत्तीसगढ़ यानि नक्सल हिंसा और आदिवासी। ये दो ऐसे शब्द हैं, जो छत्तीसगढ़ के प्रर्यायवाची बन गए हैं। कम से कम छत्तीसगढ़ से बाहर रहने वालों की नज़र में तो ऐसा ही है। बाहर से आने वाले अधिकांश लोग सबसे छत्तीसगढ़ के बारे में इन्हीं दोनों को बारे में जानना चाहते हैं। दरअसल इसमें उनकी कोई गलती है। इसमें दोष हमारा ही है, जो अपने राज्य की अच्छाइयों को उस तरह से प्रचारित नहीं कर पाए। राज्य के हुक्मरानों, नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स ने भी इन्हीं बातों को लोगों के सामने रखा है। जबकि राज्य में इन दोनों के अलावा ढे़रों खूबियां है। खूबसूरती और संपदाओं के मामले में तो राज्य का कोई मुकाबला नहीं है।

छत्तीसगढ़ियों के मन की ये पीड़ा कोई नई बात नहीं है। मेरे मन में भी इसकी कसक काफी समय से है, लेकिन नए साल के स्वागत के दौरान मेरे साथियों की खब़रें और विचारों से ऐसा लगा जैसे वे लोग चीख चीख कर एक ही बात जानना चाहते हैं कि तुम्हारे पास नक्सली और हिंसा के अलावा क्या है ? मुझे लगता है कि छत्तीसगढ़ की खूबियों के वर्णन में किताब लिखी जा सकती है। मेरे मन में अभी से दुविधा हो रही है कि कहां से शुरू करूं।

मैं अपने साथियों और छ्तीसगढ़ के बारे में जानने के उत्सुक लोगों को बताना चाउंगा कि राज्य को प्राकृतिक सौंदर्य के मामले में स्वर्ग कहा जा सकता है। राजधानी रायपुर से बस्तर और सरगुजा तक साल बीज के घने जंगलों के बीच पग पग पर खूबसूरत नज़ारे हैं। सड़क किनारे लंबे चौड़े पेड़ों के बीच नदी-नालों और झरनों के दृश्य तो हर किसी को लुभाते हैं। जगदलपुर के चित्रकोट जलप्रपात का सतरंगी नज़ारा देखते ही नज़रें ठहर जाती हैं। चित्रकोट एशिया का सबसे चौड़ा जलप्रपात है। पहाड़ियों और सरगुजा के मैनपाट की खूबसूरती का वर्णन करना तो कम से कम मेरे लिए मुश्किल है।

राज्य की कला- संस्कृति और परम्परा ऐसी अनोखी है। जिसके अहसास मात्र से गजब का सुकून मिलता है। राज्य की आदिवासी कला, लोकगीत और पंड़वानी का डंका पूरी दुनिया में बजता है। पूरे प्रदेश में एतिहासिक मंदरों और धार्मिक स्थानों की भरमार है। हर शहर-गांव में कुछ न कुछ अद्भुत है। बात चाहे सिरपुर मंदिर की जाए या फिर भोरमबाबा की है। मुझे तो लगता है कि राज्य को खूबसूरती के मामले में वरदान प्राप्त है।

खनिज संपदाओं की बात करें तो राज्य किसी छोटे विकसित देश को कड़ी टक्कर दे सकता है। बेशकीमती हीरे से लेकर लौह अयस्कों और कोयला बाक्साइट की तो ऐसी भरमार है कि खत्म होने का नाम ले। पावर के मामले में राज्य पूरे देश में अव्वल है। जरूरी है तो बस इसके सही दोहन की। राज्य में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। राज्य हर क्षेत्र में नाम कमा रहा है, लेकिन इसका वास्तविक चेहरा गायब सा हो गया है। मार्डन संस्कृति को विकास का पैमाना मानने वालों के लिए भले ही राज्य पिछड़ा हो सकता है, दरअसल राज्य की अपनी अलग पहचान और संस्कृति है। लोग अपनी सोच और संकीर्णता के कारण राज्य को पिछड़ा करार दे रहे हैं। मैं अपने साथियों और लोगों सो कहूंगा कि छत्तीसगढ़ के बारे में कोई भी राय बनाने से पहले खुद अपनी आंखों से देखे और इसे परखें।

3 comments:

दीपक said...
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दीपक said...

आपने सही कहा समरेंद्र जी अक्सर मै भी यहा अपने दिगर भारतीयो को छ्ग का इतिहास भुगोल बताता हु जब जब वे नक्सल हिंसा पुछते है !हमारे पास बहुत कुछ है जैसे-

भारत का एकमात्र सरप्लस बीजली वाला राज्य छ्ग है । एकमात्र टिन उत्पादक राज्य छ्ग है ।बीएसपी एशीया का सबसे बडा इस्पात संयंत्र है जिसकी उत्पादन क्षमता ५० लाख टन है । जिंदल एशीया का सबसे बडा स्पंज आयरन प्लांट है । एशीया का दुसरा बडा चर्च कुनकुरी जशपुर मे है । भारत मे एकमात्र लाख छ्ग मे उत्पादित होता है। केशकाल के सागौन (कीट) विश्वस्तरीय है। देश के सीमेंट उत्पादन का १०% छ्ग देता है यह देश का तीसरा बडा सीमेंट निर्माता राज्य है । देश का १२.२% वन छ्ग के हिस्से है । एशीया का सबसे बडा लौह भंडार बैलाडीला है यहा से जापान को अयस्क भेजा जाता है । बक्साईट उत्पादन मे देश छ्ठा स्थान हमारा है ,प्रुथ्वी और अग्नी जैसे मिसाईल छ्ग बाल्को के एलुमीनियीम से ही बनाये गये है।विश्व मे पांच प्रकार के रेशम पाये जाते है जिनमे से तीन छ्ग मे मिलते है !देश का एकमात्र लाख उत्पादक राज्य छ्ग है।

पर्यटन के क्षेत्र मे सीता बेंगरा की गुफ़ा विश्व की प्राचीनतम नाटय शाला है। चित्रकोट भारत के नियाग्रा के नाम से प्रसिद्ध है ।बस्तर साल वनो का द्वीप माना जाता है तीरथगढ और इंद्रावती नेशनल पार्क दर्शनीय है। कांकेर की भैंसदरहा झील मगरमच्छो की प्राकृतिक शरणस्थली है । छिंदक वंशीयोद्वारा बनाया गया बारासुर के मामा-भांजा मंदिर और फ़णीनागवंशी गोपालदेव द्वारा बनावाया गया भोरमदेव हमारे कला का परिचय है ! रत्नदेव की राजधानी रतनपुर और अन्नमदेव के द्वारा बनवाया गया दंतेश्वरी मंदिर एक इतिहास का पर्याय है !
ऐसे अनेक आकडे है जो कि बताते है कि ७०० किमी लंबे और ४३५ किमी चौडे हमारे छ्ग मे अनेक संभवनाये है ॥

Barun Sakhajee Shrivastav said...

4 जून 2008 की सुबह राज्य की राजधानी में पहली बार मैं जब आया तो यहाँ की भीषण गर्मी ने मुझे पिछ्छे पांव लौटने का सा अनुभव कराया। तारीख़ 06 को हुए दूरदर्शन के इंटरव्यूह में चयन के बाद ज्वाइन ना करने की बजह यहाँ की जलती धूप सुलगती दोपहर और आंचभरी शाम हल्की गर्म रात ऊपर से जहां-तहां सढ़ांध मारती दुर्गंध उफ कैसे रहूंगा इस शहर में.....जबकि नौकरी मेरी ज़रूरत ही नहीं बल्की मज़बूरी भी थी..फिर भी ना बाब ना यहां रहना....कभी नहीं सोचा था इत्तेफ़ाक से ज़ी24घंटे,छत्तीसगढ़ का इंटरव्यूह कॉल और समयांतर में चयन लगा सखाजी की यही इच्छा है....तब इस राज्य को कर्मभूमि बनाने का फैसला महज़ एक नौकरी नहीं बल्की इसे समझने की एक ज़िद और जानने की जिज्ञासा भी थी.....शुरूआत में जितनी दिक्कतें हो सकती थीं होती गईं...बाद में लगा प्रदेश ना सिर्फ नक्सली हिंसा का पर्याय है बल्की औऱ भी कुछ है..और भी कुछ हां जी और भी कुछ... राज्य में कितनी प्राकृतिक संपदा है यह मेरे लिए गौढ मुद्दा है जबकि प्रदेश में कितना प्राकृतिक सौंदर्य है यह बड़ा सवाल है...आज की आपाधापी भरी ज़िंदग़ी में वक्त कस कर भिंची मुठ्ठियों से भी खिसक रहा है...जीवन एक कठिन चुनौती बनता जा रहा है..रचनात्मकता और तकनीकि का शीतयुद्ध सा छिड़ा है...ऐंसे में दो पल घने पेड़ की छांव में बिता कर जो सुख मिलता है वह किसी उपभोग में नहीं है......मुझे यह प्रदेश सिर्फ इसीलिए अच्छा लगा कि यहाँ के लोग सीधे सरल भोलेनाथ हैं जो इनकी सबसे बड़ी कमी भी बना हुआ है,ज़्यादा पसंद आया। इतना ही नहीं यहां के लोगों के बोल-चाल रहन-सहन में गांव की खुशबू है जो अक्सर तथाकथित वैश्वीकरण में हीन भाव समझा जाता है...शेष सभी संपदाओं का भांडार व्यापारियों के लिए छोड़ता हूं कि वे ही गौर फरमाये और यहाँ के मूलनिवासियों का जो शोषण कर सकें वे करें....इस पर लकीर पीटना मुझे नहीं आता....आपके इस आलेख ने राज्य के प्रति किसी अज़नवी को कोई भी राय बिना समझे बनाने से रुकने का आग्रह है...मगर कहीं उन बातों का ज़िक्र नहीं कैसे वे इसे समझे आपसे युवा अग्रणी पठनशील जिज्ञासु कर्मशील लोगों से इस राज्य को बड़ी उम्मीदें हैं। सिर्फ लोहे,लक्कड़,धातु धतूरों से कोई राज्य बनिया दृष्टि से संपन्न हो सकता है लेकिन लोगों की आत्मीयता,स्वागतातुरता,ईमानदारी,और फका दिली ही सच्चे मायने में रहने,बसने का सा महसूस कराती है...वरना छत की तलाश में लोग कहीं भी घर बनाने में नहीं चूकते.....और ये सब इस राज्य में मैने महसूस किया है...वस थोड़ा सा लोग कन्फ़्यूज़न छोड़ दें कुछ ज़्यादा ही किंकर्तव्यव्यूमूढ़ हैं.....अस्तु.....