वैसे, बापू को याद करने का कोई मौका दस्तूर तो फिलहाल है नहीं, फिर भी वे याद आ रहे हैं। जाहिर है बापू को याद करने का कोई कारण तो होगा। हम सभी जानते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में बापू को रेल सफर के दौरान गोरों ने अपमानित किया था और अव्वल दर्ज की टिकट होने के बावजूद उन्हें डिब्बे से धक्के मारकर उतार दिया गया था। यहीं से गांधी ने रंगभेद के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी और उसके बाद हिन्दूस्तान को गोरों से आजाद कराने के लिए संघर्ष किया। बापू ने आंदोलनों के जरिए व्यवस्था में तो बदलाव ला दिया। इस तरह अफ्रीका में रंगभेद समाप्त हुआ और उसके बाद बापू ने हिन्दूस्तान को गोरों से आजाद कराया, लेकिन हमारी मानसिकता अभी भी गुलामी के चंगुल में है। आजाद भारत में आज भी रंग या चेहरा देखकर संबंध बनाएं और निभाएं जाते हैं। इतना ही नहीं हैसियत का पैमाना भी चेहरा है। कुल मिलाकर हमारी मानसिकता में आज भी अंग्रेजियत भरा हुआ है। भले ही व्यवस्था बदल गई है, लेकिन व्यथा अभी भी बनी हुई है।
बापू ! तुम याद आ रहे हो...आपको शायद आभास नहीं रहा होगा कि गोरे तो चले जाएंगे, लेकिन मानसिकता यहीं छोड़ जाएंगे। हालात यह हैं कि अब तो हम अंग्रेजी मानसिकता के गुलाम हो गए हैं। प्लीज कोई रास्ता बताएं...वरना हम आजादी का जश्न बस मनाते रहेंगे और अंग्रेजी मानसिकता हमको जकड़ती जाएगी।
( नोट- इसका मेरी किसी यात्रा से संबंध नहीं है )
1 comment:
Zabarast..
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