July 17, 2009
खब़र... किस्सा-कहानी... लेकिन अब और नहीं
एक बार वेटीकन के पोप न्युयार्क कि यात्रा पर गये उनके शुभचिंतको ने उन्हें समझाया कि बाकि सब तो ठीक है बस मीडिया वालो से जरा सावधान रहियेगा और जहाँ तक बन पडे "हाँ" और "ना" मे उत्तर देने से बचीयेगा !
वो जैसे ही वहा पहुंचे एक पत्रकार ने पहला सवाल दागा -क्या आप न्युयार्क मे नंगो का क्लब देखना चाहेंगे ? पोप ने सोचा कि अगर हाँ कहु तो लोग समझेंगे कि देखो कैसा पोप है क्लब मे जाने के लिये मर रहा है ...और अगर नहीं कहु तो लोग समझेंगे कि क्लब मे जाने से डरता है याने जाहिर है पोप के अंदर कुछ मामला गड़बड़ है ....इसलिये उसने मध्यमार्ग अपनाते हुये सवाल के बदले एक सवाल पुछ लिया कि क्या न्युयार्क मे भी कोई ऐसा नंगो का क्लब है ? और खुशी से अपने रास्ते बढ़ गया कि हाय! जान छुटी । मगर दुसरे दिन अखबार मे फ़्रंट पेज पर हेड्लाइन छपी कि "पोप ने न्युयार्क पहुंचते ही पुछा कि नंगो का क्लब कहां
है ? "
ये किस्सा सही या गलत, इस पर कुछ टिप्पणी करना कठिन है, लेकिन इतना तय है आजकल खब़रों को प्लांट करने का कल्चर पढ़ गया है। दुबई में रहने वाले मित्र दीपक ने इसे मुझे भेजा है। पोप का किस्सा पढ़कर मैं भी मंद मंद मुस्कुराए बिना रह नहीं सका। इतना ही नहीं इस पुराने लेकिन प्रांसगिक किस्से को कुछ और लोगों को भी सुनाया। मीडिया से जुड़े होने के कारण लोग अक्सर अख़बार में छपी और टीवी में दिखाए जाने वाली खब़रों को प्रमाणिक मानकर जिक्र करते हैं। मेरे एक नजदीकी रिश्तेदार ने भी एक समाचार का उल्लेख करते मंदी पर चिंता जताई। वे इस बात से खासे निराश थे कि मंदी के कारण नौकरियों में भारी कटौती की जा रही है। उनकी चिंता इस बात से ज्यादा थी कि मंदी के कारण उनके बेटे को भी नौकरी के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है।
हालांकि मैने उन्हें समझाने की भरपूर कोशिश की लेकिन खब़र की विश्वसनीयता पर उन्हें तनिक भी संदेह नहीं था। मेरी मुश्किल ये थी कि उस समाचार को पूरी तरह खारिज भी नहीं कर सकता था, लिहाजा मुझे पोप का किस्सा एक बेहतर काट लगा। भले थोड़े समय के लिए लेकिन मेरा प्रयोग सफल भी हुआ और लगा कि उम्मीद बाकी है। मैं ये तो कह ही नहीं सकता सभी खब़रें गलत होती है लेकिन मीडिया में मिर्च मसाले का तड़का कुछ ज्यादा हो गया है। दरअसल मीडिया घरानों के दिगर व्यावसायिक फायदे ने खब़रों की दिशा बदल गई है। इसके अलावा पाठकों का टेस्ट भी बदल गया है। लोग भी खब़रों के साथ छेड़छाड़ को पसंद करने लगे हैं। और खब़र भी किस्से कहानियों की तरह लिखे- पढ़े जाने लगे हैं। अब तो यही कह सकते हैं कि खब़रों की इसके आगे और तरक्की न हो।
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