May 31, 2010

आखिर यह कौन सा तंत्र है ?


अगर आप से तंत्र (शासन) के बारे में पूछा जाए, तो आपका जवाब लोकतंत्र या प्रजातंत्र जैसा कुछ होगा। अगर एक और तंत्र के बारे में बताऊं, तो चौंकने की जरूरत नहीं। क्योंकि यह कोई नई बात नहीं है। इससे हम सभी का पाला रोज या कभी न कभी जरूर पड़ता है। हालांकि इसका अस्तित्व देश की आजादी के साथ खत्म हो गया है। ( ऐसा माना जाता है) अगर आपको इसके नाम-गाम. महत्व या मतलब के बारे में कुछ समझ में आए, तो कृपया मुझे भी बताएं, ताकि मैं भी अपने आपको इससे परिचित करवा सकूं।
दरअसल पिछले दिनों राज्य सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार के मौके पर एक बार फिर राजभवन जाना हुआ। हर बार की तरह इस बार भी राजभवन से काफी पहले पुलिस वालों ने गाड़ी रोक ली। सुरिक्षत स्थान देखकर गाड़ी पार्क करके हम लोग पैदल राजभवन के मेनगेट के पास पहुंचे। वहां पर अपना परिचय देने और प्रवेश पत्र दिखाने के बाद मैटल डिटेक्टर से जांच हुई। मोबाइल फोन बंद करने सहित कई हिदायतों के बाद भीतर जाने दिया गया। ( हालांकि यह प्रक्रिया मैं काफी शार्ट कट में निपटा रहा हूं। क्योंकि भीतर जाने लंबी लाईन थी। काफी इंतजार और औपचारिकताओं के बाद हमारा नंबर आ आया। पहले पीआरओ से ओके रिपोर्ट मिलने के बाद सुरक्षा बल के जवान अपने लिस्ट से मिलान कर दूसरे और तीसरे साथी को बता रहे थे।)
खैर, सुरक्षा कक्ष से निकलते और राजभवन में धुसते ही लाल कालीन पर चलकर दरबार हाल में दाखिल हुए। यहीं पर शपथ ग्रहण का कार्यक्रम होना था और आमतौर पर यहीं पर होता है। अपने स्थान पर बैठकर कार्यक्रम शुरू होने का इंतजार करते रहे। चूंकि राजभवन का कार्यक्रम एकदम तय समय पर शुरू और खत्म होता है और आंगुतकों को आधे घंटे पहले बुलाया जाता है। लिहाजा लोगों ( मेरे) के पास काफी समय था। हर बार की तरह दरबार हाल पर नजरें दौड़ रही थी। एक तो जैसे कि मेरी समझ है यह दरबार हाल का नाम अंग्रेजों के जमाने का है। अंग्रेजी हुकूमत के समय राजा जनता के बीच अपना दरबार लगाते थे। आज के दौर में भी यह नाम सुनते और लिखते समय काफी अटपटा लगता है।
यह नाम सुनकर ही ऐसा लगता है जैसे यहां की दीवारें और चकाचौंध करने वाली एक-एक चीज, लोग अंग्रेज राज की याद दिलाकर चीख-चीख कर गुलामी की दास्तान बता रहे हो। यहां का माहौल भी कुछ इसी तरह का लगता है जैसे कि यहां मौजूद लोग अंग्रेजों के साये में लगान की माफी के लिए राजा से याचिका लगाने आए हों। यहां तैनात पुलिस के अफसरों से लेकर अर्दली तक के कपड़े-लत्ते और हाव-भाव भी कुछ ऐसा ही रहता है। जैसे-तैसे समय कट रहा था, इसी बीच 11 बजते ही शपथ दिलवाने के लिए महामिहम को सामने के बड़े दरवाजे से राजदंड ( भारी भरकम शायद चांदी से बना दंड़, जिसका मतलब क्या है, समझ से परे है।) थामे लोगों तथा आला अधिकारियों ने दरबार हाल में दाखिल करवाया। उनके भीतर घुसते ही सभी ने खड़े होकर अभिवादन किया और पुलिस अफसरों ने टोपी चढ़ाकर चुस्त अंदाज में सलामी ठोंकी। उन्होंने अग्रेजों के जमाने की और उनकी याद दिलाने वाले सिंहासन पर आसान ग्रहण किया। फिरंगी अंदाज में अधिकारियों ने कार्यक्रम शुरू और खत्म करने की इजाजत मांगी। हाल के एक ओर बने बालकनी से राष्ट्रधुन की गूंज से कुछ देर के लिए भारतीय होने का अहसास होता है।
जानकार बताते हैं कि राजदंड और इस दरबार का उपयोग केवल खास मौकों पर कभी-कभार होता है। लेकिन इसकी साजसज्जा किसी राजमहल से कम नहीं है। यहां एक-दो नहीं बल्कि 21 महंगे और भव्य झूमर को देखकर हर बार आंखे चौंधिया जाती है। यह तो इसकी बहुत छोटी सी झलक है। इससे ज्यादा और क्या हो सकता है। मैं इसकी कल्पना करने से कतरा रहा है। हर बार यहां के कार्यक्रमों में शामिल होते समय और इसके बाद मेरे दिमाग में यह ख्याल जरूर आता है कि आखिर यह कौन सा तंत्र है। अगर आपको इसके बारे में कुछ समझ आए तो जरूर बताएं। धन्यवाद

1 comment:

श्यामल सुमन said...

जिसे बनाया था हमने अपना उसी ने हमको भुला दिया
बना मसीहा जो इस वतन का उसी ने सबको रूला दिया

बढ़े लोक और तंत्र फँसी है ऊँचे महकों के पंजों में
वो बात करते आदर्शों की आचरण को भुला दिया

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com