अपने स्कूल के दिनों के साथी संजीत की मदद से आखिरकार मैंने भी ब्लाग बना ही लिया। करीब दो घंटों की सीटिंग के बाद यह तैयार हुआ। ब्लाग का नाम और तमाम जानकारियां संजीत ने ही सुझाया। इसमें थोड़ा काम और बाकी हैं। उसके लिए एक और बैठक दोनों करेंगे। संजीत ने कहा कि तुम्हे लिखना तो शुरू कर देना चाहिए। मैंने भी उससे सहमत होकर की-बोर्ड पर हाथ चलाने का काम शुरू कर दिया है। मैं संजीत के अवारा बंजारा को देखकर काफी दिनों से ब्लाग बनाने के बारे में प्लान कर रहा था। इसके जरिए मैं अपने छत्तीसगढि़या भाईयों-बहनों के साथ जुड़कर प्रदेश की सामाजिक और जनहित के मुद्दों पर चर्चा करना चाहता हूं। पिछलों कई सालों से अखबार व न्यूज चैनल में काम करते हुए भी यही कोशिश करता रहा हूं। अब ब्लाग में इन मुद्दों पर खुली चर्चा और बहस होगी।
पिछले कुछ समय से छत्तीसगढ़ में रमन सरकार की 3 रूपए किलो चावल योजना का जोरदार हल्ला है। 34 लाख गरीब परिवारों को सस्ता अनाज देकर जाहिर सी बात है कि सरकार इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। इसकी झलक केशकाल के उपचुनाव में देखने को मिली,जहां भाजपा ने रिकार्ड मतों से जीत हासिल कर इसे भुनाया। सरकारी योजनाओं की आलोचना करने के पक्ष में तब तक नहीं रहता हूं,जब तक उससे किसी एक आदमी का भी अहित न होता हो,फिर तो इससे लाखो परिवारों को काफी कम कीमत में दो वक्त का भरपेट भोजन मिल रहा है। मैं कहता हूं कि योजना में भ्रष्टाचार के लिए भले लाख उपाय किए जा रहे हो। भारी मात्रा में फर्जी राशन कार्ड बने हो या फिर गरीबों का राशन की कालाबाजारी की जा रही हो। इसके बावजूद भी लाखों का भला होगा। असल मुद्दा यह नहीं है कि इसमें भ्रष्टाचार हो रहा है। मैं सरकार और उससे जुड़े लोगो,आम जनता से सवाल करना चाहता हूं कि क्या इस योजना से उन सभी गरीबों का वास्तव में भला होने वाला है? दरअसल मूल प्रश्न यह उठता है कि इससे प्रदेश की आर्थिक-सामाजिक,खेती-किसानी और रोजगार की स्थिति पर कितना असर पड़ेगा।
धान का कटोरा कहे जाने वाले इस राज्य में पहले ही पैदावार घट रही है। इस योजना से क्या किसान-मजदूर खेत में जाना पसंद करेंगे? अगर नहीं तो निश्चित रूप से आने वाले समय में धान की फसल में बेताहाशा गिरावट आएगी। हम इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराएंगे? शांतिप्रिय छत्तीसगढि़या की मंशा कभी भी जरूरत से ज्यादा कमाने की नहीं रही है। इसका असर प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा और गरीबों के जीवन पर भी। कुछ जानकारों की इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि सस्ता(मुफ़्त)अनाज देने के बजाए सरकार को ज्यादा से ज्यादा पैदावार के लिए योजना शुरू करनी चाहिए। ऐसा करने से आम और गरीब किसान-मजदूर वयक्ति सपन्न होगा अन्यथा गरीबी के आंकड़े में वृध्दि आश्चर्यजनक नहीं होगी।
सरकार इस योजना पर 837 करोड़ रूपए खर्च कर रही है। इतनी बड़ी रकम में किसानों और उनके परिवार का दूसरे ढ़ंग से भला हो सकता है। मसलन सरकार प्रदेश के लाखों गरीब-पढ़े लिखे बेराजगारों को राहत दे सकती जिनसे इन दिनों भर्ती परीक्षा के नाम पर सैकड़ों-हजारों रूपए वसूले जा रहे हैं। इसी तरह शिक्षक और सुविधाविहीन स्कूल-कालेजों में राशि खर्च की जा सकती है। शिक्षा-दीक्षा में पैसा खर्च कर प्रदेश और लोगों का भी भला होगा। जैसा कि पता चलता है कि बस्तर जैसे इलाकों में शिक्षा-स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। गरीब आदिवासी जागरूकता व शिक्षा के अभाव में चंद लोगों के शोषण का शिकार हो रहे हैं।कई अखबारों के सम्पादकीय पन्नों में इस योजना के तारीफ में इस कदर कसीदे लिखे गए कि विरोध करने वाले लोगों के मुंह में ताले पड़ गए। क्या करें बेचारे राजनीति करने वालों को भी अपने वोट बैंक की चिंता है। दांव उल्टा पड़ गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे। मजबूरी में कांग्रेस को दो रूपए किलो चावल की घोषणा करनी पड़ी।
मैं तो कहता हूं कि इस मसले पर गंभीरता से विचार करते हुए सामाजिक संगठनों और प्रबुध्द वर्ग को सामने आना चाहिए। समाचार पत्रों और मीडिया को इस ओर ध्यान दिलाने काम करना चाहिए। मीडिया और ज्यादातर नेता इसमें भ्रष्टाचार-गड़बड़ी को सुर्खिया बनाने तथा लोकप्रियता हासिल करने चुप बैठा है,जबकि इस तरह के मुद्दे बहुत मिलेंगे। यह वक्त गरीबों को प्रलोभनों से वाकिफ कराने और उससे बचाने का है।आदिवासी राज्य होने के कारण इसकी पहचान भी एक भूखे-नंगे प्रदेश के रूप में है। प्रदेश से बाहर के ज्यादातर गैर पत्रकार मित्र आज भी मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में आदिम जमाने के लोग रहते हैं। दूसरी तरफ राज्य की खनिज संपदा और जंगलों पर विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की गिद्द नजर है। अफसोस तो तब होता है जब लोग छत्तीसगढ़ को बिकाऊ समझते हैं। कुछ दिनों पहले इंटरनेट में एक विदेशी पत्रकार की स्टोरी पढ़ने मिली। जिसकी हेडलाइन छत्तीसगढ़ फार सोल्ड ही कचोटने वाली है। उन्होंने लिखा था कि अगर आपके पास पैसा है,तो छत्तीसगढ़ बिकने के लिए तैयार है,आप चाहे तो वहां की नदियां,पहाड,जंगल,जमीन,खदान,हवा सब कुछ खरीद सकते हैं।मामला चाहे शिवनाथ नदी के पानी बेचने का हो या फिर देवभोग के हीरा अथवा बैलाडिला के बहुमूल्य लौह अयस्क की बिक्री का हो। पूरी सरकार और अधिकारी कटघरे में नजर आते हैं। ऐसे सरकारी तंत्र को चावल बांटने से ज्यादा दिलचस्पी राज्य की दशा-दिशा और सही पहचान बनाने में दिखानी चाहिए।
February 10, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
15 comments:
धांसू बॉस धांसू!!
interesting...Keep going...All the best..
Ujjwal
बेहतरीन प्रस्तुति, मजा आ गया, सरकारों और उनके कारिन्दों की ऐसी ही खबर ली जानी चाहिये… ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है
हिन्दी चिट्टाजगत में स्वागत है।
welcome bhai jaan
स्वागत है ...... विचारोत्तेजक लेख.
स्वागत।
वैसे प्रान्त के पास बेचने को अगर कुछ है तो खराबी नहीं।
आर्थिक संसाधन जुटाने हैं तो कहीं न कहीं पहल करनी होगी। पर अगर प्रान्त बेंच बेंच कर खाता भर है और आर्थिक मसल्स नहीं बनाता - तब गड़बड़ है।
स्वागत है भाई साहब, पहला ही लेख आग उगलता, खैर चिन्ता करें रमन भाई या उनके स्तुती करने वाले। आप ने जो कुछ कहा उसकी सच्चाई में तो दो राय हो ही नहीं सकती, लिखते रहिए हर रंग में
शर्मा जी नमस्ते. आपके ब्लाग के बारे मे सजीत जी से मालूम हुआ. मुख्यमन्त्रि खाद्यान योजना के बारे मे मुझे उतना नहि मालुम...लेकिन आपने जो बात उठाये उनके बारे मे मेरा राय है कि..१. मुख्यमन्त्रि खाद्यान योजना गरिबि रेखा से नीचे आने वालो के लिये है ना कि किसान के लिये... छ.ग. मे गरिबि रेखा से नीचे वो लोग आते है जिनके पास एक एक्ड से कम जमीन होता है. किसानो के लिये भी उपाय होने चाहिये इससे मै सहमत हु. २. भ्रश्टाचार होगा कह कर योजना लागू न करने मे समजदारी नही है ब्लकी आप जैसे युवा साथी सतत प्रयाश करे कि भ्रश्टाचार न हो यदि होता है तो अपनी लेख के माध्यम से समाज को बलाये. ३. मै आपके बात से सहमत हु एवम मेरा माना है कि किसी चिज मे सब्सिडि देने के बजाय, काम के अवसर प्रदान करना चाहिये, जिसे सब्सिडि हि ना देना पडे. लेकिन इससे पहले ध्रर्म और जाति के नाम से देने वाले सब्सिडि बन्द होने चहिये न कि गरिबो को देने वाले.
सभी का शुक्रिया,आशा करता हु कि आगे भी आप लोग से ऐसा ही सहयोग मिलेगा @Gyandutt Pandey आपको भी शुक्रिया http://www.samrendrasharma.blogspot.com/
लोकेशजी आपका कमेंट मिला अच्छा लगा। आश्चर्य वाली बात है कि छत्तीसगढ़ में खेती किसानी करने वाले ही सबसे ज्यादा गरीब हैं। ज्यादातर किसान मजदूर हैं जिनके पास एक एकड़ खेत भी नहीं है वे रेघ या ठेके पर काम करते हैं। काम वे करते हैं और मालिक कोई और होता है। ऐसे में वास्तविक गरीब किसान हैं। आपने ध्यान से पढ़ा होगा तो मैंने कहीं भी सरकारी योजना,भ्रष्टाचार और गड़बड़ी के कारण किसी की आलोचना नहीं की है। मैंने स्पष्ट लिखा है कि जिसमें किसी एक का भी भला होता है उसमें कोई खराबी नही है। उミमीद करता हूं आप मेरी बातों को समझेंगे। धन्यवाद आगे भी बात होती रहेगी।
आइए हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है। सार्थक बातें और उन पर अमल की कोशिशें ज्यादा तेज होंगी। संजीत को बधाई एक और ब्लॉगर बनाने के लिए।
gसमरेन्द्र जी हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है । यहां आप संजीत के बाद मैं तीसरा संजू हूं 'तीन तिकट' ।
भाषा, भाव व शैली से आप पत्रकारिता के अनुभव के कारण परिपक्व हैं, आपके लेखों का इंतजार रहेगा । लेख में पैराग्राफ को भी स्थान दें एवं उसकी उपादेयता को आत्मसाध करें ।
भाई जी नमस्कार .स्वागत एवं शुभकामना .भाई जी जहां तक शासन की योजना का सवाल है वो तो अपनी योजना ही ऎसी बनाते है जिससे जनता आकर्षित हो .परन्तु हम एक स्थान पर बैठ कर जनता और शासन दोनो कि लाभ हानि के साथ राज्य कि घोर चिंता प्रगट जरुर करते है परतुं क्या इस मिल रहे 3 रु किलो के चावल को पाने वाले गरीब के घर जा कर एक दिन भी उसकी मंशा और परिस्थिति को जानने का प्रयास किया है .यदि किया तो क्या हम उन्हे इस भ्रष्टाचार और उनकी आलसी प्रव्रीत्ती से अवगत करा कर सुधारने का प्रयास क्यों नही करते ?
मैं कुछ गूगल में ढूंढ रहा था, तभी आपके नाम से ब्लाग देखा और मेरी शंका सही निकली। यह ब्लाग आप ही का निकला। अच्छा लगा कि आप भी इस नये संचारक्रांति से जुड़कर एक विमर्श की शुरूआत कर रहें हैं। मेरी तरफ से शुभकामनाएं..... बबलू तिवारी, रायपुर।
Post a Comment