February 13, 2008

हे राम इन्हें माफ कर देना

13फ़रवरी यानि वेलेंटाइन डे के एक दिन पहले मेरे करीबी और वरिष्ठ शैलेन्द्र खंडेलवालजी का फोन आया। वे भिलाई में ग्रीटिंग और गिफ़ट आइटम की शाप चलाते है। फोन पर काफी घबराहट में उन्होंने बताया कि उनके दुकानों में युवकों ने तोड़फोड़ और मारपीट की। भिलाई में उनकी इस तरह की दो दुकानें है। पहले एक दुकान में हमला बोलने के बाद हुड़दगियों की टोली दूसरे दुकान पर पहुंची। उन्हें इसकी आशंका थी,इसलिए पुलिस को सूचना देकर अपने दूसरे दुकान में पहुंचे,जहां पहले से उनके भाई और बहू मौजूद थे।

हुड़दगी वहां पहुंचकर उत्पात करते इससे पहले उन्हें समझाने की कोशिश की गई और बताया कि ऐसा कोई भी सामान दुकान में नहीं है जिससे किसी की संस्कृति,सभ्यता को ठेस पहुंचे। इसके बाद भी वे लोग नहीं मानें और दुकान की तलाशी लेने घुस गये,हालांकि उन्हें कोई ऐसा आइटम नहीं मिला जिसके बहाने वे हंगामा खड़ा करते। जाहिर सी बात कि धर्म के ठेकेदार इन लोगो को कुछ तो करना था,क्योकि वे वेलेंटाईन डे का विरोध करने जो निकले थे। कुछ आपत्तिजनक सामान नहीं मिलने से वे बहस पर उतारू हो गए। इस बीच वहां मौजूद बाकी लोगों ने तोड़-फोड़ शुरू कर दी। इससे भी मन नहीं भरा तो वे मारपीट और लूटपाट भी शुरू कर दिया। इस तरह शैलेंन्द्रजी को चोटें आई और दुकान तहस-नहस अलग से हो गया। उन्होंने पुलिस को पहले ही सूचित कर दिया था। इसका उन्हें कोई फायदा नहीं मिला जब तक पुलिस पहुंची खेल खत्म हो चुका था,इतना ही नही तब तक समाज के इन ठेकेदारों ने वहां के दर्जनों दुकानों का भी वही हाल किया। सारे लोग घातक हथियार तलवार,चाकू सहित लाठी-हाकी से लैस थे। मार और नुकसान खाकर इन दुकानदारों को डाकटरी परीक्षण-शिकायत के लिए घंटों भटकना पड़ा।
मैं पूरे घटनाक्रम की जानकारी इसलिए भी दे रहा हूं कि मेरे पास इसके अलावा कुछ बताने-कहने के लिए नहीं है। यह कोई नई बात भी नहीं है। इस तरह की घटनाएं अमूमन हर साल हर शहर में होती है। शैलेन्द्रजी ने मुझे बताया कि इस तरह की घटनाओं की आशंका के कारण वे कई सालों से 14 फरवरी को दुकान खोलते ही नहीं। लेकिन इस बार एक दिन पहले ही सबकुछ हो गया।
यीशू,गांधी,विवेकानंद और गौतम बुद्ध के इस देश में संस्कृति तो खत्म हो गई तभी तो इजहारे मुहब्बत का सामन बेचने और ऐसा करने वालों के साथ इस तरह की बदसलूकी होती है। मैं वेलेंटाईन डे का समर्थक या विरोधी नहीं हूं,लेकिन इतना जरूर जानना चाहता हूं कि भगवान और धर्म की ठेकेदारी करने वाले इन लोगों को खुलेआम मारपीट-लूटपाट करने का लाइसेंस किस संस्कृति अथवा सभ्यता ने दे दिया। हमारे देश की संस्कृति-सभ्यता में हिंसा का तो स्थान नहीं है। गांधीजी ने भी देश को आजाद कराने हथियारों का सहारा नहीं लिया था,फिर ये लोग किस सभ्यता-संस्कृति की बात कर रहे हैं। विरोध-प्रदर्शन के भी अपने तरीके हैं,शायद इनके लिए नहीं हैं।पुलिस और प्रशासन भी हर साल की इस नौटंकी से वाकिफ है फिर भी वे किस इंतजार में बैठे रहते हैं,पता नहीं। इन हुड़दगियों,समाज सुधारकों की हिम्मत तो देखिए कि वे बकायदा प्रेस नोट भेजकर लोगों को धमकाते भी हैं। जनता हर बार इस भ्रम में रहती है कि पुलिस ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी या फिर उनके कुछ करने से पहले मुंह काला कर शहर में घूमाएगी,लेकिन पुलिस-कानून तो दादागिरी-गुण्डागिरी करने वालों के लिए नहीं,बल्कि आम लोगों के लिए है। पुलिस बेचारी भी क्या करे,क्योकि सबकुछ एक दिन पहले जो हो गया। आखिर में मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि हे भगवान इन्हें माफ कर देना,ये समझदार नहीं जानते कि क्या कर रहें हैं।

3 comments:

Sanjeet Tripathi said...

" भगवान और धर्म की ठेकेदारी करने वाले इन लोगों को खुलेआम मारपीट-लूटपाट करने का लाइसेंस किस संस्कृति अथवा सभ्यता ने दे दिया।"

इस सवाल का जवाब जिस दिन मिल जाएगा उस दिन धर्म के नाम पर चल रहे यह सब धंधे और राजनीति की दुकान पर ताला न लग जाएगा बंधु!!

anuradha srivastav said...

ये तो सरासर गुंडागर्दी है ,साथ ही पुलिस डिपार्टमेंट की घोर लापरवाही।

Urban Jungli said...

कमेंट लेट ज़रूर दे रहा हुं शर्मा जी लेकिन आज ही संजीत भाई की पोस्ट मे आपका लिंक मिला॥

"पुलिस भी क्या करती जब सब कुछ एक दिन पहले ही हो गया।" वैसे भी पुलिस से वही डरता है जो जानता नही पुलिस काम कैसे करती है ।

गांधी जी के देश मे आज भी गांधी जी को याद किया जाता है, लेकिन सिर्फ़ और सिर्फ़ कागज़ पे छ्पे गांधी जी को॥ उनके सिध्दांतो को नहीं ।

बहुत अच्छा लिखा है आपने।

- अमन