August 14, 2009

किसकी आजादी और किसका गंणतंत्र



केस-1
छत्तीसगढ़ पुलिस ने एक अनौपचारिक आदेश में महिला पुलिसकर्मियों के मेहंदी लगाकर 15 अगस्त के परेड में शामिल होने पर रोक लगा दी है।
केस-2
राजधानी रायपुर में एक महिला की बीमारी के बाद मौत हो गई है। उसके 6 और 10 साल के बच्चे अनाथ हो गए हैं।
ये दोनों मामले सुनने तो बहुत सामान्य किस्म के लगते हैं। लेकिन आजादी की 62 वीं वर्षगांठ के ठीक पहले के हैं। लिहाजा दोनों मामले अपने आप में खास हो जाते हैं। हर साल इस दिन आजादी के मायनों पर बहस होती है। सभी की तरह मैं भी इसमें शरीक होता हूं, इतना ही नहीं हम ऐसे कार्यक्रमों और बहस में शामिल होकर गर्व महसूस करते हैं। आजादी लड़ाई में खुद की भागीदारी का अहसास भी करते हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है, ऐसा करके हम अपने भीतर देशभक्ति के ज़ज्बे का संचार करते हैं। लेकिन इन दोनों मामलों ने मन में खदबदाहट मचा दी है। इस सवाल का जवाब ढ़ूढ़ने की कोशिश कर रहा हूं कि आखिर किसकी आजादी और किसका गणतंत्र।

पुलिस के एक अधिकारी से बातचीत के दौरान पता चला कि परेड में शामिल होने वाली महिला कर्मियों को सख्त हिदायत दी गई है कि मेहंदी लगाकर आने पर उन्हें परेड में शामिल नहीं किया जाएगा। इसके पीछे पुलिस महकमे की सोच का तो कुछ पता नहीं चल पाया, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि इसका कोई तुक नहीं है। ऐसा करना आजादी के बाद भी अंग्रेजी हुकूमत के तानाशाह रवैए को याद दिलाना जैसा है। पुलिस या सेना में काम करने वाले चाहे वो महिला हो या पुरूष, उसके मौलिक अधिकार का हनन तो नहीं होना चाहिए। महिलाओं का श्रृंगार तो उनका आभूषण माना जाता है। वैसे भी मेहंदी रचाना शुभ माना जाता है। ऐसा भी नहीं है कि मेहंदी रचाने से परेड में कोई बाधा उत्पन्न होगी। हर साल की तरह इस बार भी 15 अगस्त के पहले राखी और खमरछठ जैसे बड़े त्यौहार पड़े हैं। जिसमें हर महिला बहुत ज्यादा श्रृंगार न भी करे, तो कम से कम मेहंदी लगाना तो पसंद करती हैं।

दूसरे मामले में एक महिला की अचानक मौत हो गई। उसके दो बच्चे अनाथ हो गए। इस महिला का उसके दो छोटे छोटे बच्चों के अलावा शायद कोई रिश्तेदार नहीं है। हालत ये हैं कि उसके कफन दफन का इंतजाम करने वाला तक कोई नहीं है। मां के मरने के बाद दोनों मासूम बच्चे अपनी मां की अर्थी सजने के इंतजार में पूरी रात शव के सामने बैठे रोते रहे। गनीमत है आस-पड़ोस की कुछ महिलाएं और लोग उसके अंतिम संस्कार के लिए आगे आए और उसके क्रिया कर्म की तैयारी की। उम्मीद है कि जैसे तैसे उस महिला का अंतिम संस्कार तो हो जाएगा, लेकिन उन दो बच्चों के पालन पोषण और भविष्य का संकट अभी भी बना है। कुल मिलाकर, आजादी के 62 साल बाद भी हमारा देश भूखमरी और गरीबी की गुलामी झेल रहा है। ऐसे में ये सवाल तो उठता ही है कि किसकी आजादी और किसका गंणतंत्र।

2 comments:

शरद कोकास said...

मै केवल इतना कहना चाहता हूँ कि आजकल ऐसी मेहन्दी आती है जो अगले दिन गायब हो जाये , शौक से लगायें , वरना अगले दिन पत्रकार परेड मे शामिल महिलाओं की मेहन्दी के फोटो ही छपेंगे

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