March 19, 2011

देखो! गांधी टोपी और सूत की माला से बदलती तस्वीर



दांडी सफरनामा

असलाली से समरेन्द्र शर्मा

महात्मा गांधी की राह (दांडी यात्रा) पर चलने के लिए अगर आपके पास गांधी टोपी और सूत के माला है, तो समझ लीजिए आपकी आधा यात्रा तो अपने आप सहज हो जाएगी। जब हम गांधी टोपी और सूत की माला पहनकर दांडी के लिए निकले तो पता नहीं चला कि कब 13 मील का सफर तय करके असलाली पहुंच गए। टोपी और माला को देखकर लोग काफी उत्साह से आवभगत करते हैं। वे फिर यह नहीं देखते कि यात्री किस जात या धर्म का है। उनके लिए इतनी जानकारी मायने रखती है कि वह दांडी यात्री है। लोगों ने हमारे साथ यात्रा के लिए निकले अंग्रेज युवक ज्यस्पर का भी उतनी ही गर्मजोशी से स्वागत किया, जितना हमारा किया। लोग इस बात से भी काफी गदगद नजर आए कि एक फिरंगी भी गांधीजी के रास्ते पर चल पड़ा है। रास्ते पर मेरा और अंग्रेज युवक का उत्साह उस समय और दुगुना हो गया जब सुनने मिला देखो हिंदी-अंग्रेज साथ-साथ।

दांडी कूच के ऐतिहासिक तारीख के दिन हमने भी साबरमती आश्रम से सुबह सात बजे अपनी यात्रा शुरू की। हमारा पहला पड़ाव कोचरप आश्रम था। दक्षिण अफ्रीका से भारत आने के बाद गांधीजी ने यही डेरा डाला था। वे यहां लगभग दो सालों तक रहे। इलाके में छूआछूत की भावना और प्लेग की महामारी की वजह से गांधीजी को यह स्थान छोड़ना पड़ा। लोग बताते हैं कि इस आश्रम में एक हरिजन दंपत्ति को शरण देने से गांधीजी को भारी विरोध का सामना करना पड़ा। उसके बाद उन्होंने साबरमती आश्रम को अपना डेरा बनाया। इस स्थान के चयन के पीछे गांधीजी ने दलील थी कि यहां से श्मसान और जेल दोनों नजदीक हैं और दोनों जगह जाने के लिए उन्हें लंबी यात्रा नहीं करनी पड़ेगी।

कोचरप आश्रम में थोड़ी देर विश्राम के बाद हम चंदोला तालाब और असलाली पहुंचे। चंदोला तालाब में गांधीजी ने दोपहर तथा असलाली में रात्रि विश्राम किया था।

पहले दिन की यात्रा के दौरान रास्ते में हमे तपती धूप और भारी भरकम ट्रैफिक के कारण तकलीफ हुई, लेकिन गांव के लोगों के उत्साह और प्रे म को देखकर थकान मानो गायब सा हो गया। यहां के लोग गांधी टोपी और माला देखकर खुद ब खुद समझ गए कि हम दांडी यात्रा के लिए निकले हैं। सभी लोगों ने भरपूर सहयोग किया। मेरे साथ चल रहे एक अंग्रेज युवक का भी लोगों ने दिल से स्वागत किया। किसी के मन यह भावना नजर नहीं आई कि गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ ही मोर्चा खोला था, ऐसे में उनका यहां काम हो सकता है। इसके पहले भी पिछले साल ब्रिटेन की उच्चायुक्त की पत्नी जिली बकिंघम ने दांडी यात्रा की थी। साफ है कि गांधीजी के विचारों और सिद्धांतों को अपनाने में फिरंगी भी काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

असलाली के अपने भाषण में गांधीजी ने कहा था कि केवल असहयोग के हथियार को अपनाओ। उन्होंने सरकारी टैक्स, नौकरियों और सामानों के बहिष्कार का आव्हान किया, तो सबसे पहले यही के मुखी रणझोण भाई ने अंग्रेजों की नौकरी से त्यागपत्र का एलान किया था। उनके इस्तीफे ने पूरे देश में खलबली मचा दी थी और लोगों ने फिरंगियों और उनकी वस्तुओं का खुलकर विरोध शुरू कर दिया।

दांडी यात्रा के समय इस गांव की आबादी केवल 17 सौ थी। अब इसकी जनसंख्या बढ़कर 6 हजार हो गई है। गांधीजी ने जिस धर्मशाला में रात बिताई थी, वहां अब पंचायत भवन और आरोग्यधाम बन गया। हमने भी इसी जगह को अपना ठिकाना बनाया। हमने जब गांव के सरपंच जनक भाई बीरा से संपर्क कि उन्होंने काफी उत्साह से अगुवानी की। यहां के एक प्रतिष्ठित गुजराती परिवार ने अपने घर भोजन करवाया। ऐसा लगा जैसे अपने ही घर में बैठकर भोजन कर रहे हैं।

ऐतिहासिक दांडी यात्रा के साक्षी असलाली गांव में काफी बदलाव हो गया है। गांव के बड़े-बुजर्गों के मुताबिक गांधीजी के प्रवास के दौरान गांव के आसपास जंगल हुआ करता था। गांधीजी ने पगड्डी के किनारे यहां सभा ली थी। अब गांव में झोपड़ियों के बजाए पक्के मकान और पगड्डी की जगह क्रांक्रीट के सड़क ने ले ली है। गांव में शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर अच्छी जागरूकता दिखाई पड़ी। घर तथा सड़कों पर कहीं भी बहुत ज्यादा गंदगी नजर नहीं आई।

गांव में भले ही काफी बदलाव हुए हैं लेकिन आज भी लोगों के मन में गांधीजी के विचारों के प्रति काफी सम्मान है। गांव के सयाने जरूर इस बात दुखी है कि गांधीजी के विचारों को आत्मसात करने और उनकी स्मृतियों को सहेजने की दिशा में वे कोई सार्थक प्रयास नहीं कर रहे हैं। गांधीजी ने हमे विदेशी वस्तुओं को त्यागने की शिक्षा दी थी, लेकिन आज हम उसी के गुलाम होते जा रहे हैं। असलाली गांव के सेवानिवृत शिक्षक नटवर भाई पटेल का कहना है कि बापू की बताई बातों को छोड़कर हम पाश्चात्य संस्कृति की ओर भाग रहे हैं। टीवी, क्रिकेट और अंग्रेजी ने हमे एक बार फिर अपना गुलाम बना लिया है।

इस यात्रा में अंग्रेज युवक ज्यस्पर के साथ वक्त गुजारने का मौका मिला। बातचीत में प्राचीन इतिहास में उसकी खासी दिलचस्पी है। उसने अपनी पढ़ाई भी इसी विषय में की है। दो साल पहले जब गांधीजी के बारे में सुना और पढ़ा, तो वह उनसे काफी प्रभावित हुआ। उनके सिद्धांतों और विचारों को बेहतर ढ़ंग से जानने के लिए दांडी यात्रा पर आए हैं। उसका कहना है कि गांधीजी के अहिंसा और समानता के भाव बड़ा रहस्य है। इसके बलबूते पर उन्होंने पूरी दुनिया को नया सबक सिखाया है। गांधीजी के विचारों को जानने के बाद वे खुद में काफी बदलाव महसूस करते हैं। वे हर पहलूओं पर सकरात्मक ढ़ंग से सोचने लगे हैं। उनकी विचारधाराओं का ही नतीजा है कि उनके चरित्र की जटिलताएं खत्म हो रही है और वे पहले से ज्यादा सरल महसूस करते हैं

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