March 22, 2011
गांधी दूत आज भी फैला रहे अमन-चैन का संदेश
दांडी सफरनामा
वसना-मतर समरेन्द्र शर्मा
दांडी मार्ग पर चलते हुए एक गांव से दूसरे गांव के बीच फासला कभी-कभी भारी लगने लगता है। दरअसल, गांव की सीमा खत्म होते ही अगले पड़ाव तक सड़कों पर तेज रप्तार दौड़ते वाहन के शोर-शराबे, लोगों के कामकाज और रोजी-रोटी के तनाव के अलावा कुछ नजर नहीं आता। ऐसा लगता है कि मानो इंसान मशीन हो गया है और उसे बटन दबाकर छोड़ दिया गया है। इस सब के बीच तसल्ली की बात है कि इससे परे राह और भी कुछ है, जो थकान मिटाने के साथ दो पल मन को सुकून देता है। यहां के पेड़ो पर झूलते बंदरों, दाना चुगते कबूतरों और कहीं-कहीं पर रामधुन देख-सुनकर लगता है कि भले ही इंसान और संसार बदल गया हो, लेकिन गांधी के तीन बंदर, शांति के प्रतीक कबूतर तथा भजन में डूबे भक्त गांधी के दूत बनकर संदेश जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।
दांडी यात्रा के दूसरे दिन नवागाम से निकलकर हमने रात और तीसरे दिन शाम तक वसना,मतर,दमन और नादियाड का सफर तय किया। सफर काफी लंबा था। ऐसे में चलना मुशि्कल और यात्रा बोझिल सी लगने लगी थी। ऊपर से हाइवे पर फर्राटे से दौड़ते ट्रकों के शोर-शराबे, धूल, गर्मी ने माहौल को बुरी तरह नीरस बना दिया। दिमाग में ख्याल आता कि पिछले पड़ाव पर विश्राम लेना शायद बेहतर होता। यात्रा के इन ऊबाऊ ख्यालों के बीच नजरें जब सड़क पर बंदरों की चहलकदमी पर पड़ी, तो मन उनकी तरफ आकर्षित हुआ। करीब जाने पर उनकी धमाचौकड़ी और झींगामस्ती से थोड़ी और राहत मिली। पहले से रूकने और सुस्ताने के लिए बहाना ढ़ूढ़ रहे हाथ-पैर के लिए अच्छा मौका था। कंधे पर लदे बैग को उतारकर हमने बंदरों की मस्ती को कैमरे में कैद करना शरीर को थोड़ी राहत मिला और धूप में शांत बैठे बंदरों के चेहरे भी खिल गए और उन्होंने अपनी उछल कूद को तेज कर दिया। उनका अंदाज बिल्कुल वैसा ही लग रहा था जैसे वे भी गांव वालों की तरह हमारा स्वागत खुशी का इजहार कर रहे हैं। बंदरों की टोली में छोटे-छोटे बच्चे भी थे। हमे देखकर अपनी मां के पेट में दुबके बैठे नन्हे-मुन्ने बाहर निकलने के लिए मचलने लगे। कुछ ने तो उछल-कूद करते हमारे पास के पेड़ में आकर तरह-तरह पोज भी देना शुरू कर दिया। उनकी मस्ती देखकर मजा भी आने लगा और गांधी के तीन बंदरों की याद भी आने लगी।
मन अपने आप ही इस बात से गदगद होने लगा कि देखो रास्ते पर इंसानों की बस्ती नहीं है तो क्या हुआ। मानों बंदर कह रहे हों, हम तो हैं। मन अपने आप अहसास करने लगा कि गांधीजी ने गांवों में रूककर लोगों को अपना संदेश दिया था, हो सकता है कि उनकी बातें इन बंदरों तक भी पहुंची होगी। उस समय के लोगों की तरह हमारे पूर्वजों ने भी तो उनका स्वागत किया होगा। वैसे भी गांधीजी ने अपना एक सूत्र बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो और बुरा मत सुनो बंदरों के जरिए ही जन-जन तक पहुंचाया। गांधीजी के इन वास्तविक संदेश वाहकों से मुलाकात के बाद राहत मिली, तो हमने आगे का सफर पूरे उत्साह के साथ दोबारा शुरू किया। तब-तक वसना और मतर का सफर भी पूरा हो गया।
इसी तरह नादियाड तक की यात्रा में पक्षियों की चहचाहट और कबूतरों की गुटर-गू ने हमें खूब लुभाया। नादियाड के संतराम मंदिर के बाहर कबूतरों की गुटर-गू सुनकर लगा रहा था वे भी गांधीजी के ठहरने वाले स्थान पर जमा होकर शांति और अमन का संदेश फैला रहे हैं। गांधीजी ने अहिंसा के बल पर देश को आजादी दिलाने अंग्रेजों की भारी यातनाएं झेली, लेकिन कभी भी हिंसा और अशांति का सहारा नहीं लिया। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में उनके इस हथियार का आज भी लोहा माना जाता है। हालांकि अंग्रेजी हूकुमत शुरूआत में गांधीजी के इस अस्त्र को साधारण मानकर चल रही थी। यही वजह थी कि उन्होंने इस पूरे आंदोलन के दौरान कुछ खास उग्र तेवर नहीं दिखाए। वे तो यह मानकर चल रहे थे कि गांधीजी और उनके साथी इतनी लंबी यात्रा का थकान बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे और खुद-ब-खुद टूट जाएंगे। ऐसे में उन्हें कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन वास्तव हुआ इसके उलट। अंग्रेजों को हार माननी पड़ी और गांधी ने शांति और अहिंसा के मार्ग पर चल कर देश को फिरंगियों से मुक्त कराया।
संतराम, गांधीजी और सरदार पटेल जैसे महापुरूषों की कर्म, रण और जन्म भूमि नादियाड में जुटे शांति के दूतों की गुटर-गु उनके संदेशों के अलावा क्या कह सकती है। इसी प्रांगण में महात्मा गांधी के प्रिय राम धुन का संदेश भी महापुरूषों के प्रति नमन का भाव प्रकट करता है। संतराम मंदिर में पिछले दो महीने से चौबीसो घंटे राम भजन का कार्यक्रम चल रहा है। लगभग 180 साल पुराने इस मंदिर में यह प्रकिया अगले 20 सालों तक चलने वाली है। संतराम को मानने वालों ने उनके महाप्रयाण के 200 साल पूरे होने तक चौबीसो घंटे राम भजन करने का निर्णय लिया है। इस मंदिर व शहर ने अपने भीतर गांधीजी-सरदार पटेल की कई और यादों को सहेजकर रखा है। इसके बारे में हम आपको जानकारी अगली किश्त में देंगे।
सरकार ने भी खोला खजाना
दांडी मार्ग और गांवों को विकास की दृष्टि से देखें, ऐसा लगता है कि पिछले कुछ सालों में काफी काम हुए हैं। केंद्र और राज्य सरकारों ने कई प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी है। इस रास्ते को हैरिटेज मार्ग घोषित किया गया है। अभी तक के सफर में सभी जगह लंबी-चौड़ी सड़कें दिखने मिली। गांव के पहुंच मार्ग भी पक्के और अच्छे हैं। इसके अलावा नवागाम से दांडी तक यात्रियों के लिए 22 विश्राम भवन को मंजूरी दी गई है। बताया गया कि सभी जगहों पर काम अंतिम चरण पर है। इस साल नवागाम से दांडी तक बड़े विश्राम गृह चालू कर दिए जाएंगे। इसके अलावा गांवों की पंचायतों और नगर पालिकाओं को विकास के लिए पर्याप्त फंड दिए जा रहे हैं। हर गांव में स्कूल, अस्पातल और पेय जल के बेहतर सुविधा उपलब्ध हैं। पंचायतों-पालिकाओं में साफ-सफाई पर भी खास ध्यान दिए जाते हैं। यहां रहने वाले लोग भी सफाई के प्रति खासे जागरूक नजर आते हैं। दांडी यात्रा के समय के गांव में बड़े मकान नजर आते हैं। कई नगर पालिका तो किसी मामले में शहर से पीछे नहीं है। कहा जा सकता है कि दोनों सरकारें दांडी के राह पर पड़ने वाले गांवों व शहर के लिए खुलकर पैसा उपलब्ध करा रही है।
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