March 17, 2011
पता नहीं कब और कैसे भरभरा गई मुठ्ठी भर नमक
अहमदाबाद, 17 मार्च। चाहिए बस एक मुठ्ठी नमक और जाग गया पूरा आवाम। महात्मा गांधी ने जब 12 मार्च 1930 को फिरंगी हूकूमत के खिलाफ नमक कानून तोड़ने के लिए दांडी कूच किया था,तो पूरे देश को समझ में आ गया कि यह नमक की लड़ाई देश के स्वाभिमान और बुनियादी हक के लिए है। भले ही इस यात्रा में गांधीजी के साथ 78 लोग शामिल थे, लेकिन देश के बच्चे-बच्चे और विदेश से भी उन्हें भरपूर समर्थन मिल रहा था। मुठ्ठी भर नमक के बहाने गांधीजी ने लोगों को ऐसे पिरोया कि अंग्रेजों को आखिरकार मुल्क छोड़ना पड़ा। आजाद भारत के इन 63 सालों में मुठ्ठी की एकता कब और कैसे भरभरा गई, पता ही नहीं चला। हालात यह है कि गांधीजी के सिद्धांत और आदर्श केवल मुन्नाभाईयों की गांधीगीरि में देखने-सुनने मिलती है। इस बात का मलाल उन लोगों के चेहरों पर साफ नजर आता है, जो आज भी गांधीजी के बताए रास्तों पर चलना पसंद करते हैं।
यह बात हम सभी जानते हैं कि गांधीजी ने दांडी यात्रा केवल नमक कानून तोड़ने के लिए नहीं की थी, इसके पीछे उनका मकसद बिल्कुल साफ था कि वे देश में स्वराज और सुराज लाना चाहते हैं। दांडी मार्च के दौरान वे अपने भाषणों के जरिए लोगों को विदेशी कपड़ों को छोड़कर खादी पहनने और व्यसनों को त्यागने का आग्रह करते थे। उनकी दलील थी कि विदेशी सामानों और नमक के कारण देश का लाखों-करोड़ों रूपया बाहर जा रहा है। यात्रा के दौरान गांधीजी प्राय: सभी गांवों-कस्बों में रूककर इन्हीं बातों को समझाने की कोशिश करते थे, इसका नतीजा देश को आजादी के रूप मिला। लेकिन स्वराज स्थापना के इतनों बरसों बाद भी देश सुराज के लिए दूसरे गांधी का मुंह ताक रहा है।
दरअसल अहमदाबाद आने के बाद दो किस्सों ने मुझे ऐसा सोचने के लिए मजबूर किया। पहले वाक्ये में मुझे एक गांधी समर्थक ने बताया कि लगे रहो मुन्नाभाई फिल्म के रिलीज होने के बाद साबरमती आश्रम में बच्चों की भीड़ भी आती है। माता-पिता बच्चों का यहां तब घुमाना शुरू किया जब बच्चों ने फिल्म देखने आने की जिद की। मतलब साफ है कि आज गांधीजी सिर्फ विचारों और किताबों तक सीमित हैं। जबकि उनकी बताई बातें रोजाना के काम से जुड़ी हैं। लेकिन घरों में गांधीजी का जिक्र कुछ मौकों पर ही आता है।
दूसरा वाक्या उस समय हुआ जब मैं आश्रम में किताबें देख रहा था, उसी समय एक खादीधारी सयाने से दिख रहे व्यक्ति ने आश्रम के संचालक से सवाल किया कि गांधीजी तो चले गए, अब आगे क्या। उनकी बातों में व्यंग नजर आ रहा था। हालांकि मुझे बाद में बताया कि वे एक बड़े गांधीवादी विचारक माने जाते हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि गांधीजी की विचारधारा और उनके पदचिंह अहमदाबाद में ही धुंधले हो रहे हैं। इस बात से वे लोग भी इत्तेफाक रखते हैं, जो अपने पूर्वजों और गांधीजी से मिली विरासत को सहेजे हुए हैं।
गांधीसेना के अध्यक्ष और चार बार के दांडी यात्री धीमंत भाई मानते हैं कि गांधीजी की विचारधारा और आदर्शों के प्रचार-प्रसार के लिए केंद्र सरकार को खास ध्यान देना चाहिए। उनके नाम पर लाखों-करोड़ों रूपए खर्च तो हो रहे हैं, लेकिन उसकी सार्थकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गांधीजी के बारे में नई पीढ़ी को कुछ भी नहीं मालूम है। वे कहते हैं कि सरकार के पास अभी समय है। इस दिशा में सोचना चाहिए और स्कूल की पढ़ाई की शुरूआत से गांधीजी पर विशेष पाठ्यक्रम होना चाहिए। गांधी का उपयोग आजकल दिखावे और प्रचार-प्रसार के लिए ज्यादा होने लगा है।
वे बताते हैं कि गांधीजी ने उनके परदादा को खादी के काम के लिेए बुलाया था। पिता के विरोध के बावजूद वे इन दिनों इमाम मंजिल में खादी का काम देखते हैं। ब्याज पर पैसे लेकर उन्होंने दो लूम खरीदा है। लेकिन पूरे शहर में सूत कातने के लिए कोई कारीगर नहीं है। गांवों से कारीगर बुलवाकर खादी बनाते हैं। उन्हें तसल्ली इस बात की है कि गांधीजी के बताए रास्तों पर चलने की कोशिश कर रहे हैं। धीमंत भाई साल 1998 से लेकर अब तक चार बार राजीव-सोनिया गांधी सहित कई हस्तियों के साथ दांडी मार्च कर चुके हैं। वे एक बार दक्षिण अफ्रीका में 241 मील की यात्रा कर चुके हैं।
धीमंत भाई के ही परिवार के ही हिम्मत भाई और जय सिंह भाई भी साथ-साथ कई बार यात्रा कर चुके हैं। जय सिंह भाई रिजर्व बैंक में नौकरी करते हुए रिटायर हुए हैं। वे बताते हैं कि गांधी स्कूल में पढ़ने के कारण शुरू से उनके विचारधारा से प्रभावित थे। आज भी घर के साथ-साथ सड़क की सफाई के लिए बड़ा सा झाड़ू लेकर निकल पड़ते हैं। संस्मरण सुनाते हुए वे कहते हैं कि रास्ते में गांव वाले काफी उत्साह से हर दांडी यात्री का स्वागत करते हैं। खाने-पीने की चीजों से लेकर रहने तक का ध्यान रखते हैं। अपनी यात्रा के दौरान उनकी कोशिश होती है कि लोगों और स्कूल के बच्चों को गांधी के बताए रास्तों पर चलने के लिए प्रेरित करें।
हिम्मत भाई बताते हैं कि उनकी दांडी यात्रा का मकसद है कि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को गांधीजी के विचारों से जोड़ सकें। सरकारी नौकरी में रहते हुए उन्होंने अवकाश लेकर यात्राएं की। पहली बार यात्रा करने के बाद से वे लोग खादी के अलावा कोई दूसरा कपड़ा नहीं पहनते। सभी की इच्छा है कि समाज से व्यसन, छूआछूत और कन्या भ्रूण हत्या बंद हो,लेकिन वे इस बात से खासे दुखी भी है गांधीजी का उपयोग लोग राजनीति और नाम कमाने के लिए किया जा रहा है। उनके सिद्धांत गांधीगीरि में तब्दील हो गए हैं।
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1 comment:
"छत्तीसगढ" मे इसे पढा था तब अनुमान लगाया था कि ये आप ही होँगे ...आज यहा इसे पढकर अनुमान निष्कर्ष हो गया !
होली कि मुबारकबाद सहित
दीपक्
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