April 13, 2011

नीरव अंधकार में गांवों को चुरा लिया शहरों ने !


दांडी सफरनामा

नादियाड से समरेन्द्र शर्मा

दांडी यात्रा से परे एक दूसरे आंदोलन के समय जब कराडी स्थित झोपड़ी से गांधीजी को आधी रात गिरफ्तार किया गया था, तो उनकी सहयोगी मीराबेन ने कहा था कि अंग्रेज रात के नीरव अंधकार में चोरों की भांति आए और गांधीजी को चुरा कर ले गए। उनका यह वक्तव्य उजड़ते गांवों पर सटीक बैठता है। लगता है कि दांडी मार्ग के गांवों से झोपडि़यों पर पड़ती गुनगुनी धूप, लहलहाती फसल, खेती-किसानी में जुटे किसान, खेतों से लौटती महिलाएं, नदियों की शीतलता, पगड्डी और चौपाल को शहरीकरण की अंधाधुंध कोशिशों ने चुरा लिया है। इस रास्ते पर एक-दुक्का स्थानों को छोड़कर अधिकांश जगहों पर बड़े-बड़े इमारत, डामर-क्रांकीट की सड़के और हमेशा सबसे आगे रहने का तनाव नजर आता है।


अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी के लिए निकली हमारी यात्रा ने चार दिनों में चंदोला तलाब, असलाली, बरेजा, नवागाम, वसना, मतर, दमन, नादियाड और बोरिअवी तक का फासला पूरा किया। लगभग 50 मील के इस सफर के दौरान रोजाना नए अनुभव हुए और नए लोगों से मुलाकात हुए। लगभग हर जगह इलाके के बारे में पूछने पर पता चला कि गांधी की दांडी यात्रा से लेकर अब तक गांवों में जमीन आसमान का फर्क आया है। यह खुशी की बात है कि बीते 81 सालों में गांवों की अच्छी खासी तरक्की हुई, लेकिन गांवों की कई बूढ़ी आंखों में तरक्की के सफर की कसक भी देखने को मिली। बुजुर्ग मानते हैं कि विकास और शहरीकरण की अंधाधुंध रफ्तार ने गांवों को खत्म सा कर दिया है।


नवागाम से आगे बढ़ने पर हमें वसना और मतर के बीच के सफर में ग्रामीण परिवेश का थोड़ा बहुक आभास हुआ है। हरी-भरी फसलों के बीच झोपड़ी पर पड़ती सूरज की किरण, झोपड़ियों में चूल्हा-चौका करती महिलाएं, अपनी मस्ती में कूदते-फांदते बच्चे, खेतों से लौटते किसानों ने गांव के माहौल का अहसास कराया। वसना और मतर के बीच एक छोटी सी नदी, उसके शीतल और साफ-सुथरे पानी और पैरों तले खिसकती रेत की गुदगुदी ने मन को तसल्ली दी। लेकिन यहां से आगे बढ़ने के बाद ऐसे दृश्य तो केवल नाम मात्र के लिए दिखाई दिए। जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ने लगी, ऐसा लगा मानो खेती-किसानी और झोपड़ियों की जमीन को बड़ी-बड़ी इमारतों-भवनों ने चुरा कर आसमान की ऊंचाई तक ले गए हों। मुंह चिढ़ाते इन भवनों को देखकर लगता मानो कि वे यही सवाल कर रहे हों कि अब कैसे लौटोंगे अपने बीते हुए दिनों की ओर। कहने के गांवों को पार करते हुए नादियाड पहुंचे तो हमारी तलाश और भी बेईमानी लगने लगी। शहर में प्रवेश करते ही समझ आ गया कि शायद हम गांवों को ढ़ूढ़ते रह जाएंगे।

यहां की गगनचुंबी इमारते और कांप्लेक्सों ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की जन्म स्थली को भी अपने आगोश कुछ इस तरह जकड़ लिया है कि पता ही चलता है कि इस जगह पर भी कुछ खास है। गनीमत है कि उनके घर के ठीक सामने बापू की प्रतिमा और सरदार की फोटो के साथ सूचना लगा दी गई है। ताकि आने-जाने वाले लोगों को इसकी जानकारी मिल सके।
अपने जमाने का सरदार पटेल यह बंगला छोटे-मोटे मकानों के बीच भी दबा-कुचला सा भाव लिए नजर आता है। इस घर में रहने वाला भी कोई नहीं है। सरदार पटेल के रिश्तेदार अमेरिका के न्यू जर्सी शहर में बस गए हैं। 6 महीने तो यह बंगला पूरी तरह से खाली रहता है। घर की चाबी पड़ोसियों के पास रहती है। कोई आ जाए, तो पड़ोसियों से चाबी लेकर वह सरदार की जन्मस्थली को देख सकता है। बाकी के 6 महीने सरदार पटेल की बहू शॉरमिस्टा यहां रहती है। सरदार की जन्मस्थली देखने हम पहुंचे तो उन्होंने बताया कि सरदार के जन्मदिवस और पुण्यतिथि पर नेता और अधिकारी आते हैं। इसके अलावा विशेष आयोजन होने पर ही यहां लोगों की भीड़ जुटती है।


नादियाड शहर का सरदार पटेल के अलावा गांधीजी से भी गहरा नाता है। उन्होंने दांडी यात्रा के दौरान यहां रात्रि विश्राम के अलावा सभा को भी संबोधित किया था। वे यहां के 180 साल पुराने संतराम मंदिर में रूके थे। आलीशन और भव्य मंदिर के एक कोने में गांधीजी लकड़ी के भवन की पहली मंजिल की खिड़की से सभा ली थी। यह स्थान आज भी सुरिक्षत है। हालांकि लकड़ी के भवन को तोड़कर उसी डिजाइन में सीमेंट का भवन बनाया गया है। गांधीजी के कमरे में चित्रों के सहारे उनसे जुड़ी यादों को सहेजने की कोशिश की गई है। नादियाड गोवर्धनराम और मणिलाल नथूभाई जैसे बड़े साहित्यकारों का भी नगर है। गांधीजी ने भी दांडी मार्च के दौरान इन्हीं का नाम लेते हुए आंदोलन के लिए सहयोग मांगा था और कहा कि क्या उन्हें विद्वानों की विरासत देखने का मिलेगी।

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