April 21, 2011

बापू की राह पर नशे का कोराबार !


दांडी सफरनामा

बोरसद-रास से समरेन्द्र शर्मा

शीर्षक पढ़कर चौंकना लाजिमी है। आपको लग रहा होगा कि दांडी यात्रा का नशा और गांधी से क्या संबंध हो सकता है। बल्कि, गांधीजी ने तो आजादी की लड़ाई के साथ व्यसनों और सामाजिक बुराईयों के खिलाफ भी अभियान चलाया था। वे काफी हद तक अपनी इस मुहिम में सफल भी हुए थे। यही वजह है कि दांडी यात्रा के रास्ते पर पड़ने वाले कई गांवों में आज भी चाय तक को बुराई की नजर से देखा जाता है और पूरे गुजरात में शराबबंदी है। लेकिन हम जो कह रहे हैं, वह बात भी उतनी ही सही है, जितनी की बाकी। दरअसल, बोरसद-रास और कंकापुर के रास्ते पर हमने केवल तंबाकू की फसल लहलहाती हुई देखी। इतना ही नहीं पूरे देश के लिए तंबाकू की आपूर्ति यहीं से होती है।


महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आंइस्टीन का कथन याद आता है। जिसमें उन्होंने कहा था कि दुनिया में शराब के बाद कोई दूसरा बड़ा नशा है, तो वह महात्मा गांधी है। दांडी यात्रा पर निकलने से पहले जब मैंने गांधी को पढ़ना शुरू किया और मार्ग पर लोगों से मुलाकात की तो मुझे भी आइंस्टीन का कथन काफी हद सही लगा। गांधीजी को जानने और समझने का वाकई नशा सा चढ़ने लगा। मुझे यह भी अहसास हुआ कि साबरमती से यात्रा के हर पड़ाव पर केवल गांधी का ही नशा लोगों के सिर चढ़कर बोलता है। लेकिन बोरसद-रास और कंकापुरा के सफर के दौरान सैकड़ों-हजारों एकड़ में फैले तंबाकू की खेती देखकर अचरज हुआ। हो सकता है कि यहां के लोगों के लिए यह सामान्य बात हो और यह उनका पेशा मात्र हो, लेकिन मेरा आश्चर्य इस बात पर था कि जिस मार्ग के लोग 81 साल पहले के गांधी के चाय के बहिष्कार के आग्रह का आज भी पालन कर रहे हैं, वे कैसे तंबाकू के नशे के सरताज बने हुए हैं।

बापू की इस राह पर चलते हुए मेरे दिमाग में ऐसा कोई ख्याल भी नहीं आया था कि यहां नशे का इतना बड़ा कारोबार चलता होगा। सच कहूं तो यह जानने से पहले हरी-भरी फसलों को देखकर मैं काफी ललचा रहा था। और तो और काफी समय तक इनकी तस्वीर उतारने में लगा रहा। इस बीच खेत में काम करने वाले लोगों से बात हुई, तो पता चला कि इन हरियाली में तो गांधी से भी बड़ा नशा छिपा हुआ है। जिसके चलते वे इसे छोड़ नहीं पा रहे हैं। किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले थोड़ी और तहकीकात करने पर पता चला कि इन गांवों के लोग स्वभाव से भोले-भाले और सरल हैं। गांवों के छोटे और गरीब किसानों के खेतों पर नशे का कारोबार वे नहीं, बल्कि बड़े-बड़े ठेकेदार कर रहे हैं। किसानों से खेत किराए पर लेकर उनमें नशे की फसल काटी जी रही है।

दरअसल, किसानों की मजबूरी यह है कि खेती-किसान से पेट पालना तक मुश्किल हो रहा है, फिर बाकी की तो बात ही छोड़िए। ऐसे में वे खेत को किराए पर देकर और वहां मजदूरी करके थोड़ा ज्यादा मुनाफा कमाने की लालच से ऐसा कर रहे हैं। किसानों की यह गलती उतनी बड़ी नहीं है, जितनी उन ठेकेदारों की है, जो पैसा और नाम दोनों कमा रहे हैं और बदनामी किसानों के खाते में डाल रहे हैं। जानकार बताते हैं कि इस इलाके में सालों से तंबाकू की खेती हो रही है। धीरे-धीरे यह कारोबार कई सौ करोड़ और सैकड़ों एकड़ तक में पहुंच गया है। पूरे देश में बीड़ी बनाने की तंबाकू यहीं से जाती है। अब इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने बड़े हिस्से और पैमाने पर यह व्यवसाय फल-फूल रहा है। जबकि इस देश की धरती के बारे में कहा जाता है कि मेरे देश की धरती सोना उगले, हीरे-मोती। लेकिन हम ऐसी धरती से क्या-क्या उगलवा रहे हैं, इसकी कल्पना शायद यहां के कवियों और महापुरूषों ने की होगी।



खारा है तो क्या हुआ...

गांधी ने कंकापुरा से दांडी के लिए अगले पड़ाव का सफर महिसागर तट से पूरा किया था। नाव से 9 किमी की यात्रा करने के बाद उन्होंने करेली में रात्रि विश्राम किया था। लेकिन जब हम यहां पहुंचे, तो परिस्थितियां बिलकुल अलग थी। नाव तो बहुत दूर रास्ता बताने के लिए भी कोई नजर नहीं आ रहा था। नदी ने तो मानो गांधीजी को अपने आप में उतारा लिया था और नमक की चादर ही ओढ़ ली थी। नदी में पानी की एक बूंद का नामोनिशान नहीं था। नदी ने जिस मिठास के साथ खारे नमक को अपने सीने से लगाया था, उसे देखकर गांधीजी का एक भाषण याद आता है जिसमें उन्होंने कहा था कि मां कितनी भी कुरूप हो कोई व्यक्ति सुंदर महिला को अपनी मां नहीं बनाता। वैसे ही भारत मां के लिए गुलामी की बेड़ियों से आजाद करने वाला खारा नमक भी उतना ही प्यारा मीठा है।

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