April 25, 2011

हीरे के सामने फीकी दांडी के नगिने की चमक


दांडी सफरनामा

 

सूरत से समरेन्द्र शर्मा

गुजरात के प्रमुख औद्योगिक शहर और हीरा कारोबार के लिए मशहूर सूरत में देश और दांडी मार्च के नगिने महात्मा गांधी की चमक फीकी पड़ गई है। नमक आंदोलन के जरिए देश को आजादी दिलाने और दुनिया को सत्य-अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले बापू के इस सूबे में आज खुशहाली, संपन्नता और ऐश्वर्य तो है, लेकिन सूरत में दूर-दूर तक गांधी का नामलेवा नजर नहीं आता।


 अंग्रेजों के खिलाफ गांधीजी के नमक आंदोलन में दांडी पहुंचने से पहले सूरत को अपना पडाव बनाया था। इस शहर और इसके आसपास के गांवों से गुजरते हुए गांधी से जुड़ी यादों को तलाशने की कोशिश की, लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया। इससे लगे गांव छपरभाट्ठा और डिंडौली के स्कूलों में लगे शिलालेखों में दांडी यात्रा का जिक्र देखने को मिला। दांडी यात्रा के एक महत्वपूर्ण पडाव सूरत में हम केवल शहर और प्रदेश के वैभव से रू-ब-रू हुए। वैसे तो सूरत की ढेरों खासियत है। यहां देश का सबसे बड़ा कांडला पोर्ट बंदरगाह है। जो साल 2001 में भूकंप की भयंकर तबाही के बावजूद फैलाद की तरह खड़ा हुआ है। यहीं हीरे की जगमगाहट को चमकाकर पिरोया जाता है। हीरे तराशने की कला यहां आकर परवान चढ़ती है। जानकारों के मुताबिक यहां हीरे का लगभग 6 हजार करोड़ का करोबार होता है। इतना ही नहीं दुनिया के 11 चुनिंदा हीरों में तकरीबन 9 को यहां से तराशकर भेजा जाता है। इस व्यापार से लगभग 15 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। इसके अलावा यह नगरी साक्षी है टेक्सटाइल्स मिलों की। जहां इससे करीब दस लाख से ज्यादा लोगों की जीविका चलती है और सलाना पचास हजार करोड़ से ज्यादा का टर्न ओवर हैं।

कमरतोड़ मेहनत करने वाले गुजराती जायके के भी शौकीन है। यही वजह है कि सूरत की घारी का स्वाद जेहन से दूर नहीं होता। भावनगर का गांठिया और ढोकला भी यहां की खास पहचान है। शिक्षा-दीक्षा, रोजगार, संपन्नता और विकास से परे सूरत की तमाम खूबियों के बावजूद यहां से बापू के निशान पूरी तरह मिट चुके हैं। ऐसा लगता है कि मानो गांधीजी का इस शहर से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। जबकि यह बापू की जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनो रही है। दांडी के लिए कूच करने से पहले हमने सूरत में पूरा का पूरा एक दिन बिताया। इस दौरान लंबी-चौड़ी सड़कों, गली-कूचे से लेकर लगभग सभी बड़े रास्तों पर पड़ने वाले ओवर ब्रिज में घूम-घूमकर बापू के पदचिंहों को तलाशने की कोशिश की, लेकिन हमें हर जगह निराशा ही हाथ लगी। आश्चर्य की बात यह भी थी कि अधिकांश लोग इस बात से भी अनभिज्ञ थे कि दांडी यात्रा के दौरान बापू ने शहर को अपना मुकाम बनाया था। सूरत से पहले छपराभाट्ठा में, जहां गांधीजी ने दोपहर को विश्राम किया था, वहां हमें केवल इतना पता चला कि गांधी सूरत के डिंडौली में रूके थे और उसी रास्ते से होते हुए दांडी गए थे। छपराभाट्ठा के स्कूल में जहां बापू रूके थे, वहां पर दीवार पर केवल एक पत्थर लगा हुआ दिखाई दिया। यहां जिस घर में गांधीजी रूके थे, वहां जाकर देखने पर मालूम हुआ कि फिलहाल घर में रखरखाव का काम चल रहा है और उस वक्त वहां कोई भी मौजूद नहीं था। डिंडौली में छपराभाट्ठा की तरह ही एक शिलालेख बापू की दांडी यात्रा का गवाही दे रहा था।

 

 

1 comment:

Rahul Singh said...

समय की मोटी परत.